अक्सर आपने महसूस किया होगा कि किसी व्यक्ति विशेष के साथ बात करने या
उसके संपर्क में आने के बाद आपका मूड बदल गया, ऐसा क्यों होता है?
वैसे तो हमारे शरीर में कई चक्र होते हैं, लेकिन इनमें प्रमुख सात ही हैं। ये चक्र एनर्जी फील्ड की श्रृंखला या चेतना केंद्र कहलाते हैं। शाक्य में इसे कुण्डलिनी कहा गया है। हर चक्र शारीरिक, मानसिक, संवेदना और आध्यात्मिक स्तर पर जुड़ा होता है। शारीरिक स्तर पर हर चक्र शरीर के मुख्य अंग या ग्रंथि (ग्लैंड) का संचालन करता है जो शरीर के अन्य अंगों से सम्बद्ध होते हैं और समान रूप से विद्युत या यांत्रिक (Electrical/Mechanical) तरंग उत्पन्न करते हैं। इन चक्रों से ही हमारा जीवन चलता है। यदि इनमें से कोई एक चक्र भी ठीक से काम नहीं करे, बंद हो या खराब हो जाए तो जीवन में संतुलन नहीं रहता। कहने का मतलब यह कि चक्र की ख़राबी के कारण व्यक्ति को संबंधित अंग या ग्रंथि की बीमारी होती है। ये चक्र किसी चक्रवात की तरह वृत्तीय गति से घूमते हैं। इस घूर्णन के कारण चक्र के केंद्र में निर्वात (वैक्यूम) बनता है। ठीक उसी तरह, जैसे आधा बाल्टी पानी को हाथ से घुमाने पर यह तेजी से घूमता है और इसके केंद्र में भँवर बनता है। चक्र के केंद्र में बनने वाले भँवर के कारण जो कुछ भी कंपायमान स्तर (वाइब्रेटरी लेवल) के करीब आता है, वह उसी में समा जाता है। ये चक्र आसपास के वातावरण से सांकेतिक सूचनाएं खींचते हैं। यह कुछ भी हो सकता है कलर वाइब्रेशन से लेकर पराबैंगनी किरणें, रेडियो, माइक्रोवेव से लेकर दूसरे व्यक्ति का औरा तक। कहने का मतलब यह है कि ये चक्र आसपास के माहौल का स्वास्थ्य हासिल करते हैं। साथ ही, ये चक्र एनर्जी ऑफ वाइब्रेशन भी उत्पन्न करते हैं। इसीलिए किसी व्यक्ति के सम्पर्क में आने पर हम उसके मूड से प्रभावित हो जाते हैं। यदि वह खुश है तो खुश और अगर ग़मगीन है तो वैसा ही महसूस करने लगते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम अचानक शिथिल हो जाते हैं, जैसे शरीर में कोई जान ही न हो। जब ऐसा हो तो समझ जाइये कि आपका एनर्जी ड्रेन हुआ है।
वैसे तो हमारे शरीर में कई चक्र होते हैं, लेकिन इनमें प्रमुख सात ही हैं। ये चक्र एनर्जी फील्ड की श्रृंखला या चेतना केंद्र कहलाते हैं। शाक्य में इसे कुण्डलिनी कहा गया है। हर चक्र शारीरिक, मानसिक, संवेदना और आध्यात्मिक स्तर पर जुड़ा होता है। शारीरिक स्तर पर हर चक्र शरीर के मुख्य अंग या ग्रंथि (ग्लैंड) का संचालन करता है जो शरीर के अन्य अंगों से सम्बद्ध होते हैं और समान रूप से विद्युत या यांत्रिक (Electrical/Mechanical) तरंग उत्पन्न करते हैं। इन चक्रों से ही हमारा जीवन चलता है। यदि इनमें से कोई एक चक्र भी ठीक से काम नहीं करे, बंद हो या खराब हो जाए तो जीवन में संतुलन नहीं रहता। कहने का मतलब यह कि चक्र की ख़राबी के कारण व्यक्ति को संबंधित अंग या ग्रंथि की बीमारी होती है। ये चक्र किसी चक्रवात की तरह वृत्तीय गति से घूमते हैं। इस घूर्णन के कारण चक्र के केंद्र में निर्वात (वैक्यूम) बनता है। ठीक उसी तरह, जैसे आधा बाल्टी पानी को हाथ से घुमाने पर यह तेजी से घूमता है और इसके केंद्र में भँवर बनता है। चक्र के केंद्र में बनने वाले भँवर के कारण जो कुछ भी कंपायमान स्तर (वाइब्रेटरी लेवल) के करीब आता है, वह उसी में समा जाता है। ये चक्र आसपास के वातावरण से सांकेतिक सूचनाएं खींचते हैं। यह कुछ भी हो सकता है कलर वाइब्रेशन से लेकर पराबैंगनी किरणें, रेडियो, माइक्रोवेव से लेकर दूसरे व्यक्ति का औरा तक। कहने का मतलब यह है कि ये चक्र आसपास के माहौल का स्वास्थ्य हासिल करते हैं। साथ ही, ये चक्र एनर्जी ऑफ वाइब्रेशन भी उत्पन्न करते हैं। इसीलिए किसी व्यक्ति के सम्पर्क में आने पर हम उसके मूड से प्रभावित हो जाते हैं। यदि वह खुश है तो खुश और अगर ग़मगीन है तो वैसा ही महसूस करने लगते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम अचानक शिथिल हो जाते हैं, जैसे शरीर में कोई जान ही न हो। जब ऐसा हो तो समझ जाइये कि आपका एनर्जी ड्रेन हुआ है।
बढ़िया विचार।
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