बुधवार, 4 मई 2016

जूतोपचार

चार-पॉंच साल पहले की बात है। मेरे एक मित्र ने दो बच्चियों को गोद लिया। दोनों सगी बहनें हैं। एक बच्‍ची की गोद लेने की प्रक्रिया 2006 में ही पूरी हो गई थी। हालांकि वह दोनों को घर ले आई थीं। लेकिन एक की प्रक्रिया कागजी कार्रवाई में लटकी हुई थी। इसके लिए उन्‍हें बार-बार शिमला से लुधियाना जाना पड़ता था। समस्‍या यह थी कि एक अधिकारी ने उस बच्‍ची को गोद लेने के लिए जो शर्तें रखी थीं वह कुछ अव्‍यवहारिक था। अधिकारी का कहना था कि बच्‍ची के नाम कुछ फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट और संपत्ति का कुछ हिस्‍सा करो तभी यह संभव होगा। इससे पहले ही वह बड़ी बच्‍ची के नाम फ्लैट कर चुकी थीं। अब एफडी और संपत्ति मिलाकर 10-15 लाख दूसरी बच्‍ची के नाम करना था। जो उनके लिए संभव नहीं था। वह काफी घबराई हुई थीं कि पता नहीं क्‍या होगा। उन्‍होंने मुझसे कहा कि कुछ कीजिए ताकि दोनों बच्चियां मेरे पास ही रहें। मैंने वादा कर दिया कि काम हो जाएगा। अगले दिन उन्‍हें लुधियाना जाना था। लिहाजा रात को ही मैंने उनका काम बनाने की कोशिश की।
मैंने ध्‍यान लगा कर उस अधिकारी को देखा जो धनवन्‍तरी सी इकहरी काया का स्‍वामी था। लेकिन खडूस दिखता था। मैंने उसके समक्ष गया और छूटते ही जमकर धुनाई की। मुझे नहीं मालूम ऐसा क्‍यों हुआ। फिर उससे कहा, साले तेरा दिमाग खराब है? कभी देख कर आ दोनों बच्चियों की परवरिश कैसी हो रही है। दोनों शिमला के अच्‍छे स्‍कूल में पढ़ती हैं और उनकी हर सुख-सुविधा का ख्‍याल रखा जाता है। यह कैसा नियम है कि एक तो परोपकार करो... ऊपर से पूरी तरह कंगाल बन जाओ! काम आज ही हो जाना चाहिए। वरना अभी ट्रेलर था। पूरी फिल्‍म दिखाते देर नहीं लगेगी। मैंने देखा कि उसने काम कर दिया।
अगले दिन मोहतरमा गईं तो उनका काम पलक झपकते ही हो गया। उसने फ्लैट में तीनों को हिस्‍सेदार बना दिया। फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट की रक़म भी कम कर दी थी। यानी कुल मिलाकर उनका काम पॉंच लाख के आसपास में ही हो गया। मैंने कहा था कि वहां कुछ अजीब सी घटना भी घटेगी, क्‍योंकि मैंने इस काम में जिस शक्ति की मदद ली है वह काम पूरा होने तक वहीं रहेगी। वह अधिकारी के कमरे से निकल कर आई तो एक सज्‍जन उन्‍हें साईं बाबा की तस्‍वीर पकड़ा गए। किसी दफ्तर में ऐसा होनो थोड़ा अटपटा लगा। कुछ लोग इसे बक़वास कहेंगे। मैं पहले ही कह चुका हूं कि अघ्‍यात्‍म, ध्‍यान, तंत्र-मंत्र जैसी पराज्ञान की बातें उनके लिए नहीं हैं। बहरहाल, मोहतरमा का काम हो गया था तो वह बहुत खुश थीं। ऊपर से साईं महाराज उनके पास आ गए थे तो वह अभिभूत थीं।
आलेख में तारीख का जिक्र नहीं किया गया है, क्‍योंकि अब यह मुझे याद नहीं। साल कौन सा था, वह भी याद नहीं। संभवत: 2011 का आखि़री या 2012 की शुरुआत की बात है। दिन, महीना और साल मित्र ही बता सकती हैं। मैं इन बातों को लिखना तो नहीं चाहता था, लेकिन लिख रहा हूं क्‍योंकि यह शोध का विषय है कि ऐसा कैसे होता है? इसमें दो महत्‍वपूर्ण बातें हैं। पहला यह कि मैं दिल्‍ली में ही था, लेकिन पारगमन विधि से उस अधिकारी के पास पहुंचा जिसे मैंने न तो कभी देखा था और न ही उस जगह से वाकि़फ़ था जहां वह बैठता था। दूसरी बात यह कि काम कराने का तरीक़ा हिंसात्‍मक था। सबसे बड़ी बात यह कि काम का सम्‍पादित हो जाना। संयोग बार बार नहीं हो सकते। निश्चित रूप से यह संयोग नहीं है, लेकिन क्‍या है? Astral travel के बारे में हम सबने सुना है। किस तरह पुराने समय में ऋषि-मुनि पलक झपकते ही एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर पहुंच जाते थे। इस पर प्रयोग हुए हैं और इसका निष्‍कर्ष यह निकला कि ऐसा सम्‍भव है। मैं निष्‍कर्ष तक पहुँचने वाली संस्‍था का नाम नहीं लिख रहा हूँ।

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