पूरी सृष्टि अहंकार से निर्मित है। शास्त्र-पुराणों में अहंकार तीन प्रकार के बताये गये हैं- सात्विक (वैकारिक), राजस (तैजस) और तामस (भूतादि रूप)। सात्विक अहंकार से दस इन्द्रियों के अधिष्ठाता दस देवता और 11वीं इन्द्रिय मन (- के भी अधिष्ठाता देवता) उत्पन्न हुए हैं। वहीं, इन्द्रियों की उत्पत्ति तैजस यानी राजस अहंकार से हुई है। तामस अहंकार से आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी का निर्माण हुआ। विभिन्न प्राणियों की उत्पत्ति करने वाले भगवान् स्वयंभू श्रीहरि ने सबसे पहले जल बनाया। इसमें अपनी शक्ति (वीर्य) का आधान (अधिष्ठान या स्थापन) किया।
भगवान को नारायण क्यों कहते हैं?
जल को 'नार' कहा गया है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति नर से हुई है। 'नार' यानी जल ही पूर्व काल में भगवान् का 'अयन' अर्थात् निवास स्थान था। इसलिए भगवान् को नारायण कहा गया है।
ऐसे हुई सृष्टि की उत्पत्ति
अग्नि पुराण में अग्नि देव कहते हैं कि श्रीहरि ने जो वीर्य स्थापित किया था वह जल में सोने के अण्डे के रूप में प्रकट हुआ, जिसमें से ब्रह्मा निकले। ऐसा अग्नि देव ने सुना था। भगवान् हिरण्यगर्भ एक साल तक उस अण्डे में रहे और इसे दो भाग में तोड़ा। इससे दो लोक बने। एक का नाम 'द्युलोक' प़ड़ा ओर दूसरे को 'भूलोक' कहा गया। अण्डे के दोनों हिस्सों के बीच आकाश का निर्माण किया गया। जल के ऊपर पृथ्वी को रखा गया और दिशाओं को दस भागों में बांटा गया। प्रजापति की इच्छा सृष्टि निर्माण की थी, इसलिए उन्होंने काल, मन, वाणी, काम, क्रोध और रति आदि की रचना की। इसके बाद सबसे पहले उन्होंने विद्युत (आकाशीय बिजली), वज्र, मेघ यानी बादल, रोहित इन्द्रधनुष, पक्षियों और पर्जन्य का निर्माण किया। फिर यज्ञ की सिद्धि के लिए मुंह से ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद को प्रकट किया। इन वेदों से साधुओं ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया। इसके बाद ब्रह्मा ने अपनी भुजा से छोटे-बड़े भूतों को उत्पन्न किया। सनत्कुमार के अलावा क्रोध से प्रकट होने वाले रुद्र को जन्म दिया। ब्रह्मा ने सात ब्रह्म पुत्रों मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, और वशिष्ठ को जन्म दिया। ये सभी उनके मन से उत्पन्न हुए थे, इसलिए मानस पुत्र कहलाए।
नर आैर नारी की उत्पत्ति
ब्रह्म पुत्रों की उत्पत्ति के बाद ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो भाग किये। आधे हिस्से से नर और आधे से नारी की उत्पत्ति हुई। फिर उस नारी के गर्भ से संतानें उत्पन्न कराईं जो स्वायम्भुव मनु और शतरूपा नाम से प्रसिद्ध हुए। इनसे ही मनुष्यों की उत्पत्ति हुई।
भगवान को नारायण क्यों कहते हैं?
जल को 'नार' कहा गया है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति नर से हुई है। 'नार' यानी जल ही पूर्व काल में भगवान् का 'अयन' अर्थात् निवास स्थान था। इसलिए भगवान् को नारायण कहा गया है।
ऐसे हुई सृष्टि की उत्पत्ति
अग्नि पुराण में अग्नि देव कहते हैं कि श्रीहरि ने जो वीर्य स्थापित किया था वह जल में सोने के अण्डे के रूप में प्रकट हुआ, जिसमें से ब्रह्मा निकले। ऐसा अग्नि देव ने सुना था। भगवान् हिरण्यगर्भ एक साल तक उस अण्डे में रहे और इसे दो भाग में तोड़ा। इससे दो लोक बने। एक का नाम 'द्युलोक' प़ड़ा ओर दूसरे को 'भूलोक' कहा गया। अण्डे के दोनों हिस्सों के बीच आकाश का निर्माण किया गया। जल के ऊपर पृथ्वी को रखा गया और दिशाओं को दस भागों में बांटा गया। प्रजापति की इच्छा सृष्टि निर्माण की थी, इसलिए उन्होंने काल, मन, वाणी, काम, क्रोध और रति आदि की रचना की। इसके बाद सबसे पहले उन्होंने विद्युत (आकाशीय बिजली), वज्र, मेघ यानी बादल, रोहित इन्द्रधनुष, पक्षियों और पर्जन्य का निर्माण किया। फिर यज्ञ की सिद्धि के लिए मुंह से ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद को प्रकट किया। इन वेदों से साधुओं ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया। इसके बाद ब्रह्मा ने अपनी भुजा से छोटे-बड़े भूतों को उत्पन्न किया। सनत्कुमार के अलावा क्रोध से प्रकट होने वाले रुद्र को जन्म दिया। ब्रह्मा ने सात ब्रह्म पुत्रों मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, और वशिष्ठ को जन्म दिया। ये सभी उनके मन से उत्पन्न हुए थे, इसलिए मानस पुत्र कहलाए।
नर आैर नारी की उत्पत्ति
ब्रह्म पुत्रों की उत्पत्ति के बाद ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो भाग किये। आधे हिस्से से नर और आधे से नारी की उत्पत्ति हुई। फिर उस नारी के गर्भ से संतानें उत्पन्न कराईं जो स्वायम्भुव मनु और शतरूपा नाम से प्रसिद्ध हुए। इनसे ही मनुष्यों की उत्पत्ति हुई।
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