ध्यान के लिए पहला काम है
स्थिति। सबसे पहले कहीं भी, किसी भी तरह आराम से बैठ जाएं। कुर्सी
पर, ज़मीन पर या कहीं भी। पैरों को मोड़ें और हाथ की
अंगुलियों को आपस में फंसाएं। अंदर और बाहर की आवाजों पर रोक लगाइये। मंत्र का
उच्चारण भी नहीं करना है। शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दीजिए। पैरों को मोड़ने और अंगुलियों को फंसाने से शक्ति का दायरा बढ़ जाता है। स्थिरता बढ़ जाती है। चूंकि आंखें दिमाग का द्वार हैं, इसलिए इसे भी बंद कर लें। वरना
यह भटकाएगा। सोचना, मंत्रोच्चारण, अंदर या बाहर की कोई भी ध्वनियां , मन की क्रियाएं हैं। इन पर
रोक लगाना होगा। शरीर ढीला छोड़ने पर चेतना दूसरे कक्ष में
पहुंच
जाती है। अगर विचारों और बाहरी शोर ध्यान भटका रहे हैं तो एक उपाय कर सकते हैं। अपनी सांसाें पर ध्यान दीजिए। प्राकृतिक या स्वाभाविक तरीके़ से सांस लें। बस सांसों की आवाजाही पर ध्यान रखें। अन्य विचारों को हटा दें। सांसों में खो जाएं। धीरे-धीरे महूसस होगा की सांसें छोटी होती जा रही हैं। आखि़र में यह बहुत छोटी हो जाएगी। तब यह थर्ड आई यान ज्ञान चक्र के पास चमक का रूप ले लेगी। इस दशा में हर किसी में न सांस
रहेगी, न विचार। यह बिना विचारों की दशा है। इसे
निर्मल स्थिति कहते हैं। यह ध्यान की स्थिति है। इस
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