मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

हीलिंग में कितनी ताकत है?

हीलिंग में क्‍या इतनी ताकत/शक्ति होती है कि देहधारी को मृत्‍यु के आग़ोश में जाने से रोक सके? एक हीलर होने के नाते मेरा यह पूछना शायद इस पद्धति पर प्रश्‍न चिह्न लगाने के समान होगा। लेकिन विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते यह सवाल स्‍वाभाविक है। गणित ने मुझे तर्क करना सिखाया और विज्ञान ने प्रश्‍न उठाना। ईश्‍वर है या नहीं... इस पर कुछ शोध भी हुए हैं। इसमें पाश्‍चात्‍य देशों के बुद्धिजीवी इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे कि ईश्‍वर नहीं है,लेकिन ब्रह्माण्‍ड में एक ऐसी ऊर्जा है जो पूरी सृष्टि को संचालित करती है। सर्न में लार्ज हेड्रन कोलाइडर के प्रयोग का मकसद भी एक तरह से ईश्‍वर के होने का पता लगाना ही था।
बहरहाल, सवाल यह है कि क्‍या ईश्‍वरीय शक्ति यानी कॉस्मिक एनर्जी यानी प्राण शक्ति से जीव (आत्‍मा) को शरीर में रहने के लिए बाध्‍य किया जा सकता है? कुछ समय पूर्व की एक घटना से लगातार मेरे मन में यह सवाल उठ रहा है, लेकिन इसका जवाब नहीं मिल रहा। अलबत्‍ता हीलिंग की एक दूसरी घटना जरूर इस रहस्‍य को और बढ़ा रही है। इसलिए सबसे पहले कुछ माह पूर्व की उसी घटना का जिक्र करूंगा। यदि कोई इस घटना से उपजे सवालों पर प्रकाश डाल सके तो मुझ अकिंचन पर बहुत बड़ा उपकार होगा।
जब कभी भी मेरे मन में यह विचार आया कि हीलिंग नहीं करूंगा, क्‍योंकि इसके कुछ साइड इफेक्‍ट्स तो होते ही हैं। जिसे हर बार मैंने महसूस किया है। लेकिन फैसला लेने के बाद हर बार कुछ पेचीदे केस मेरे पास आए और हर बार किसी न किसी रहस्‍य से परदा उठा।
मेरे एक अंकल हृदय रोग से पीडि़त थे। एक पांच सितारा अस्‍पताल में उनका इलाज चल रहा था, लेकिन मैं अस्‍पताल के इलाज के तौर-तरीकों से संतुष्‍ट नहीं था। हालांकि दुर्भाग्‍यवश्‍ा मैं उस दौरान एक बार भी उनसे मिलने नहीं गया। लेकिन ध्‍यान लगाने पर डॉक्‍टरों की लापरवाही साफ दिखती थी। उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी, लेकिन डॉक्‍टर कुछ नहीं कर रहे थे। आखि़रकार उन्‍हें एक अन्‍य निजी अस्‍पताल में ले जाया गया। वहां पता चला कि उनके फेफड़े में संक्रमण फैल गया है। इलाज शुरू हुआ, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। लगातार मुझसे हीलिंग के लिए कहा जा रहा था। ख़ुद अंकल का भी मुझ पर बहुत भरोसा था। एक दिन की बात है। उस दिन हीलिंग के दौरान मुझे जो महसूस हुआ, वैसा पहले कभी भी नहीं हुआ। मैं उनकी हीलिंग कर रहा था। उस समय उनकी सांसें डूब रही थीं और धड़कन भी बहुत कम थी। हीलिंग के दौरान मेरा पूरा शरीर ठण्‍डा पड़ने लगा। इसमें कोई शक नहीं कि उस समय कड़ाके की ठण्‍ड पड रही थी और मैं नहाने जाने वाला ही था। तभी हीलिंग के लिए कहा गया था। चूंकि उस समय शर्ट नहीं पहना हुआ था, इसलिए लगा शायद ठण्‍ड लगने की वजह यही रही होगी। लेकिन दूसरे ही पल अहसास हुआ कि मैं तो मुश्किल से ही स्‍वेटर पहनता हूं। इससे ज्‍़यादा ठण्‍ड में भी बिल्‍कुल ठण्‍डे पानी से ही नहाता हूं। घर में तो कभी स्‍वेटर पहनता ही नहीं चाहे कितनी भी ठण्‍ड रहे, क्‍योंकि शरीर को अहसास ही नहीं होता कि ठण्‍ड लग रही है। गर्मी में भी यही हालत रहती है, बस ऑंखों पर धूप से लगता है कि गर्मी अधिक है। अगर धूप का चश्‍मा लगा हो तो लगता है बादल छाए हुए हैं और गर्मी से परेशानी नहीं होती।
चूंकि मुझे ठण्‍ड अधिक लग रही थी और हाथ-पैर बिल्‍कुल ठण्‍डे पड़ चुके थे। शरीर भी बुरी तरह कांप रहा था। मैं कम्‍बल ओढ़ कर बैठा और हीलिंग के लिए ध्‍यान लगाने लगा। लेकिन पाया कि मेरी हीलिंग का कोई असर नहीं हो रहा है। तब मैंने Ascendant Masters से हीलिंग में मदद मांगी। तत्‍काल 7 Masters अंकल के इर्द-गिर्द गोला बनाकर खड़े दिखे। वे जो ऊर्जा दे रहे थे उसे मैं साफ देख रहा था। इन 7 masters में से दो से तो मैं भली-भॉंति अवगत हूं। तीसरे master के बारे में डॉक्‍टर कौशिक गुप्‍ता से पता चला, जो फ्रांस में रहते हैं। यह उनके गुरू थे। ख़ैर... कुछ देर हीलिंग करने के बाद मैंने अपने सखा को मैसेज किया कि अब कोई फायदा नहीं है। बचने की उम्‍मीद नहीं दिख रही। लेकिन अपनों के बारे में कोई भी यह स्‍वीकार नहीं कर पाता कि वह उसे छोड़कर जाने वाला है। सखा ने भी मुझसे कहा कि हीलिंग करते रहो। लिहाजा मैं करता रहा। Masters के सहयोग से अंकल को artificial life support पर रखा। (एक विचित्र संयोग अभी मैंने डॉ: गुप्‍ता का जिक्र किया और उनका फोन आ गया। दिल्‍ली में ही हैं।) हालांकि मैंने सखा से कह तो दिया कि अंकल के बचने की उम्‍मीद नहीं है, लेकिन दिमाग हावी हो रहा था। हीलिंग के कारण उनकी हालत में मामूली सुधार से लग रहा था कि शायद वह स्‍वस्‍थ होकर घर जा सकेंगे। लेकिन इंट्यूशन कुछ और ही कह रहा था। काफी देर तक दिल और दिमाग में गुत्‍थम-गुत्‍थी के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि हो सकता है उनसे जुड़ाव के कारण मैं यह स्‍वीकार नहीं कर पा रहा हूं कि वह हमें छोड़कर चले जाएंगे। इससे पहले गर्मी के महीने में जब वह पांच सितारा अस्‍पताल में पहली बार भर्ती हुए थे तब एक अहसास हुआ था। डॉक्‍टर उनकी बाइपास सर्जरी करने पर आमादा थे, लेकिन मुझे यह जानलेवा लग रहा था। उस समय मैंने कहा भी था कि इनकी बाइपास सर्जरी होते मैं नहीं देख पा रहा। अगर उस समय उनकी सर्जरी होती तो बचने की उम्‍मीद बिल्‍कुल नहीं दिखी थी। हां, कुछ बातें मैंने सखा और उसके परिवार से छिपाई। उसमें से एक यह थी कि नवंबर में उनका जाना तय था। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। उनका इन्‍तकाल दिसंबर मध्‍य में हुआ।
मैं दफ्तर में था, लेकिन ध्‍यान उन्‍हीं पर लगा हुआ था। रात को भी जब घर आया तो हीलिंग भेजने की कोशिश की। तब मैंने महसूस किया कि अंकल मुझसे पूछ रहे हैं... मिलने नहीं आओगे? अब पुख्‍़ता हो गया था कि वह नहीं रहेंगे। अगले दिन दफ्तर से सीधे रात को मैं उनसे मिलने चल पड़ा। अल सुबह अस्‍पताल पहुंचा। दिन में उनसे मिला तो एक सवाल उन्‍होंने पूछा... मैं बचूंगा कि नहीं? इस सवाल ने मुझे अंदर तक हिला दिया। वह बहुत तक़लीफ़ में थे। अगला सवाल इससे भी कहीं ज्‍यादा मार्मिक था। उन्‍होंने पूछा- क्‍या इस दर्द को बॉंध नहीं सकते? मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं इतना ही कह सका.... दूसरे कमरे में जाकर कुछ करता हूं। लेकिन मेरे किसी प्रयास का कोई नतीजा नहीं निकल रहा था। अब मुझे पूरा विश्‍वास हो गया था कि कुछ नहीं हो सकता। हालांकि घर से निकलते समय ही यह लग गया था कि हमारी यह आखि़री मुलाकात होगी। यह विचार भी आया था कि मेरे लौटने के बाद मुझे बुरी ख़बर मिलेगी। जब पूरा विश्‍वास हो गया कि अब मैं कुछ नहीं कर सकता तो खुद को लाचार जान कर वापस दिल्‍ली आने का विचार कर लिया। बुझे मन से मैं चल पड़ा। चलते समय मेरे मन में एक ही ख्‍़याल बार-बार आ रहा था। कहीं मेरी वजह से अंकल को इतनी तक़लीफ़ तो नहीं हो रही। मैंने उन्‍हें कृत्रिम तरीके से रोक रखा है। यह भाव मुझे अपराध का अहसास करा रहा था। इसी सोच-विचार में मैं करीब एक घंटे तक सड़क किनारे खड़ा रहा और किसी बस में नहीं चढ़ा। आखि़र में रात 8:30 बजे के बाद बस पकड़ी। सवाल मुझे लगातार अपराधी बना रहे थे। इसलिए करीब नौ बजे मैंने बस में ही ध्‍यान लगाया और सारी कृत्रिम व्‍यवस्‍था समेट ली। यह सोचकर कि अगर इसी कारण वह तक़लीफ़ सह रहे हैं तो अब और सहन नहीं करें। इसके बाद मुझे थोड़ी शांति मिली। रात 11:30 बजे के आसपास घर के अंदर दाखिल ही हुआ था कि मनहूस संदेश आ गया। हालांकि ख़बर पुष्‍ट नहीं थी, क्‍योंकि सखा घर पर था। उसने थोड़ी देर बाद बताया कि एक घंटा पहले पापा हमें छोड़कर चले गए।
ध्‍यान में मुझे जो कुछ दिखा था वह अक्षरश: सही साबित हुआ। मेरी जगह कोई और होता तो पता नहीं किस किस तरह के दावे करता। लेकिन मैं हीलिंग की अपनी योग्‍यता पर ही सवाल उठाता हूं, क्‍या ऐसा सम्‍भव है कि मुक्ति की ओर प्रस्‍थान कर चुके जीव को रोक दिया जाए? मेरे हिसाब से उन्‍हें दो दिन पहले ही चले जाना चाहिए था। डॉक्‍टरों का भी यही कहना था कि उनके फेफड़े फड़फड़ा रहे हैं, धड़क नहीं रहे। अंकल जिस स्थिति में थे, उस हालत में तो इनसान बेसुध हो जाता है। लेकिन उन्‍हें मैं होश में बात करते और तक़लीफ बयां करते देखा और सुना। जिस समय मैं अंकल को दी गई ऊर्जा और अन्‍य कृत्रिम व्‍यवस्‍थाएं वापस ले रहा था तब मैंने यही उम्‍मीद की थी कि ऐसा करने के बाद एक-दो घंटे भी वह मुश्किल से ही बच सकेंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो समझूंगा कि मैं बेवजह मन में भ्रम पाल रहा था। लेकिन दुखद घटना ने मुझे झुठला दिया। पर एक बात से तसल्‍ली हुई कि उन्‍हें बेरहम दर्द से हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई। यदि उनकी आत्‍मा की यात्रा पूर्ण हो गई हो तब तो कोई बात नहीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ होगा तो ईश्‍वर नए जन्‍म में उनकी राह को आसान बना दे।

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